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सरकार को शर्मिंदा करने की तरफ कलम चली तो महंगा पड़ेगा और कलम पत्रकारों की चलती है | गर ! कलम सच बयान करे और उससे सरकार को शर्मिंदा होना पड़े , तो ऐसे पत्रकारों को अब संभलना होगा | क्यूंकि पत्रकारों का आकार दुनियां भर में मैसेज , हवा की झोंका की तरह बातों को फैलाने का काम करता है | तो क्या ऐसे कानून बनने चाहिए , जिससे सच को ढक दिया जाए ? सरकार पर या सरकारी कार्यालय के अधिकारी - पदाधिकारी की गलतियों या नासमझी पर कलम न चले , सवाल खड़े न किये जाए या फिर उस स्पष्टता को जनता तक न पहुँचाया जाए | आखिरकार क्यूँ ऐसा होता है ? जब - जब कलम चलता है , तब - तब नए कानून बनाये जाते हैं या नहीं तो कानून में संशोधन किया जाता है |
ब्रिटेन में ऐसा हीं हो रहा है | ब्रिटेन के ऑफिसियल सीक्रेट एक्ट में बदलाव होने की तैयारी की जा रही है | इसके तहत सरकार पर अगर ऐसी स्टोरी या चर्चा लिखा गया या चलाया गया , जिससे उनकी छवि खराब हो या उन्हें शर्मिंदा होना पड़े , तो ऐसे पत्रकारों को 14 साल तक जेल की सजा हो सकती है | साथ हीं इस पत्रकरों के साथ भी विदेशी जासूस जैसा बर्ताव किया जायेगा | किसी भी देश की सुरक्षा व संप्रभुता को चुनौती दी जा सकती है , ऐसे में इनमे संशोधन जरुरी है | तो अब पत्रकार को कलम चलाने या दिखाने से पहले , बहुत बार सोंचना पड़ेगा ! वे सिर्फ अच्छी - अच्छी बातें लिखे और ये कथनी भूल जाए - "बुरा मत कहो . बुरा मत देखो और बुरा मत सुनों" | अगर ऐसा देखते / कहते और सुनते आप महसूस करे , तो इससे सरकार की गरिमा धूमिल होती है | लोगों को कहने दीजिये , बुरा करने दीजिये , मगर लिखिए नहीं | सर्फ़ अच्छाई को आंकिये , जहाँ बुराई दिखे वहां पत्रकार अपनी आँखें बंद कर ले |
ब्रिटेन सरकार का कहना है कि - जब कानून बनाये गए थे , तब कम्युनिकेशन के साधन कम थे | चूकि अब साधन तेज गति का रूप ले रही है , तो डेटा से पलक झपकते हीं किसी विदेशी जासूसी पर नकेल कसने के लिए , जो नए कानून बनाये जा रहे है , इसमे दोषी पाए गए ऐसे पत्रकारगण जो लीक डाक्यूमेंट्स को हैंडल करते है , वे अपना बचाव नहीं कर पायेंगे |
यह इसलिए कि पत्रकार ने खुलासा किया था कि - हेल्थ सेक्रटरी मैट हैनॉक ने Covid प्रोटोकॉल का उलंघन किया | सीसीटीवी फूटेज लीक हुआ था , जिसमे देखा गया था कि - वे अपने सहकर्मी को ऑफिस में "किस" कर रहे थे | उनका कहना है कि - सीसीटीवी फूटेज का जरिया बनाकर , इन बातों या फूटेज का खुलासा किया गया | ऐसे में इस बातों को देश व विश्व पटल पर लाने वाले पत्रकारों पर करवाई की जा सकती थी , जो नहीं हुआ |
ऐसी बातों का खुलासा होने से हैनॉक को अपने पद से इस्तीफा देना पड़ा | साथ हीं उनका पारिवारिक रिश्ता भी खराब हुआ और सरकार की भी आलोचना हुई थी | उनके अनुसार पत्रकारों को ऐसा नहीं करना चाहिए ! इससे छवि खराब होती है |
आज का जो दौर है , वह है इन्टरनेट का और इसका असर खासकर क्विक डेटा ट्रांसफर टेक्निक के इस दौर को ध्यान में रखते हुए 1989 में बनाये गए इस कानून में आवश्यक बदलाव किये जा रहे है | "ह्युमन राइट्स ऑर्गेनाइजेशन और लॉ कमीशन" ने इसका खाका तैयार किया है | इनका कहना है कि - पत्रकारों को अपने बचाव का मौका दिया जाना चहिये | परन्तु कंसल्टेशन के लिए जारी किया गया पेपर में , गृह कार्यालय ने कहा है कि - इस तरह के कदम से हमारे प्रयासों को कमजोर किया जा सकता है , जो सार्वजनिक हित में नहीं होगा |
इस नए कानून की आलोचना आरम्भ हो चूकि है और इस आलोचना में कई हाथ ऊपर उठ चुके हैं | जिसमे सेंसरशिप और ओपन राइट्स ग्रुप ने इस नए कानून को पत्रकारों के Whistle - Blower ( अवैध कार्य में लीन व्यक्ति के विषय में जानकारी देने वाला व्यक्ति ) पर हमला करार दिया है |
नेशनल यूनियन ऑफ़ जर्नलिस्ट की प्रवक्ता ने कहा है कि - मौजूदा कानून लीक या Whistle Blow करने वालो , लीक हुई जानकारी प्राप्त करने वालो और विदेशी जासूसो के बीच प्रावधानों और सजा को अलग करता है | उनका कहना है कि- सरकार इन अंतर को मिटाने की कोशिश कर रही है | सरकार की मंशा है कि - लीक डेटा पाने वाले पत्रकारों के खिलाफ लगने वाली अधिनियम / सजा , 2 साल से बढ़ाकर 14 साल कर दी जाए |
नेशनल यूनियन ऑफ़ जर्नलिस्ट का कहना है कि - जहाँ Whistle - Blower मानते है कि उन्होंने सार्वजनिक हित में काम किया है | उन्हें कोर्ट के सामने अपनी बाते रखने की स्वतंत्रता व हक़ होना चाहिए और जूरी उनकी स्पष्टता , विचार व सोंच से सहमत है तो , उनकी रक्षा की जानी चाहिए |
अब सवाल है कि - ऐसे पत्रकारों को , जो सच को सामने लाये और दुनियां को दिखलाए | उनके लिए 14 वर्ष की सजा के लिए सरकार ने कदम आगे बढ़ाया है | इसका साफ़ मतलब है कि - पत्रकार की कलम सरकार पर न उठे ! आखिरकार कलम उठती कब है ? जब अत्याचार या अवैध तरीके से कोई कार्य किया जा रहा हो | सरकार या सरकारी कार्यालय के द्वारा अगर कुछ भी गलत न हो , तब पत्रकार कलम चला दे , तो ये पत्रकार की गलती है | परन्तु जहाँ सच पर कलम चले तो - अंकुश क्यूँ , खलबली क्यूँ मच उठता है ?
कोरोना काल के दौरान हेल्थ सेक्रेटरी का "किस" लेना , क्या यह अपराध में नहीं है ? मगर उसे छाप देना या दुनियां तक दिखला देना , यह अपराध माना गया है | यानि गुनाह का दो रूप - जैसे कथनी और करनी में फर्क | खैर अपने - अपने देश का संविधान है और संविधान में संशोधन या नए कानून लाने वाले संसद में हीं बैठते है , तो उनकी मर्जी के बिना तो कुछ हो नहीं सकता ! वे चाहे जो करे अपने पक्ष में | लेकिन पत्रकारों की कलम व स्वतंत्रता पर अंकुश निंदनीय है , हर देश के लिए | ...... ( न्यूज़ / फीचर :- भव्याश्री डेस्क )
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