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इलेक्टोरल बॉन्ड मामला क्या है ? जो सुप्रीमकोर्ट में 8 वर्षो से ज्यादा समय से निलंबित है और इस फैसले पर सभी की निगाहें टिकी हुई है | इसलिए कि 2024 में होनेवाले लोकसभा चुनाव में इसका गहरा असर पड़ सकता है |
भारत के मुख्यन्यायधीश D Y चंद्रचूर के नेतृत्व में सुप्रीमकोर्ट के 5 न्यायधीश की एक संविधान पीठ इलेक्टोरल बॉन्ड योजना की क़ानूनी वैधता से जुड़े मसले की सुनवाई कर रही है |
बुधवार को सुप्रीमकोर्ट में जोरदार बहस छिड़ गया | चीफ जस्टिस ने पूछा कि सत्ताधारी दल को चंदे का एक बड़ा हिस्सा मिलता है इसका कारण क्या है ?
इलेक्टोरल बॉन्ड लाते समय केंद्र सरकार ने कहा था कि इससे सियासी दलो में पैसे जुटाने के संदेहास्पद तरीके से सुधार लाया जा सकता है | भारत सरकार इलेक्टोरल बॉन्ड की घोषणा 2017 में की थी जिसे 29 जनवरी 2018 को कानूनन लागु कर दिया गया |
आखिरकार सवाल यह है कि इससे राजनीति पार्टी को हीं सबसे ज्यादा फायदा क्यूँ ? इस योजना के साथ समस्या यह है कि यह सिलेक्टिव गोपनीयता का प्रावधान करती है | यह पूरी तरह से गुमनाम नहीं है , यह चयनात्मक गोपनीयता प्रदान करती है | यह भारतीय स्टेट बैंक के लिए गोपनीय नहीं है और न हीं कानून प्रवर्तन एजेंसियों के लिए क्यूंकि इसका विवरण स्टेट बैंक के पास उपलब्ध रहता है जहाँ कानून प्रवर्तन एजेंसियों की पहुँच है |
केंद्र सरकार ने सुप्रीमकोर्ट से कहा है कि भारत सहित अधिकांशतः देश चुनाव के समय काले धन के इस्तेमाल की समस्या से जूझता है | चुनावी बॉन्ड योजना मतदान प्रक्रिया में अवैध धन के खतरे को ख़त्म करने का एक प्रयास मात्र है |
विपक्षी दल इलेक्ट्रोल बॉन्ड का विरोध कर रही है और इसी बॉन्ड को लेकर इतनी बहस छिड़ गया |
अटर्नी जनरल ने शीर्ष आदालत के सामने तर्क दिया कि नागरिको को उचित प्रतिबंधो के अधीन कुछ भी और सबकुछ जानने का सामान अधिकार नहीं हो सकता |
स्पष्ट कर दे कि यह बॉन्ड राजनीतिक दलो को चंदा देने का एक वित्तीय जरिया है | यह एक बचत पत्र की तरह है जिसे भारतीय नागरिक का कंपनी भारतीय स्टेट बैंक की चुनिन्दा शाखाओं से खरीदकर गुमनाम तरीके से दान कर सकता है | इसका मूल्य 1 हजार , 10 हजार , 1 लाख , 10 लाख या करोड़ रुपये का पत्र हो सकता है | यह जनवरी , अप्रैल , जुलाई और अक्टूबर के माह में 10 से 15 दिनों की अवधि के लिए खरीद के लिए उपलब्ध होता है जिसे जनप्रतिनिधित्व अधिनियम के अनुसार पंजीकृत राजनीति दलो को दान दिया जा सकता है और यह राशि लोकसभा या विधानसभा में पिछली बार मतदान का 1% मत हासिल किया हो उन्हीं के लिए सरल है |
ऐसे में भारतीय स्टेट बैंक राजनीति दलो को धन देने के लिए बॉन्ड जारी करता है और इस बॉन्ड को कोई भी दाता खरीद सकता है जिसके पास एक ऐसा बैंक खाता है जिसकी KYC की जानकारी उपलब्ध है | इलेक्टोरल बॉन्ड में भुगतानकर्ता का नाम नहीं होता है |
गुरुवार को भी इसमे सुनवाई होनी है | बीते दिनों में इस विषय पर दिनभर चली सुनवाई के दौरान पीठ ने चुनाव आयोग से हर आम चुनाव , विधानसभा चुनाव के लिए औसत आवश्यक की कुल धन राशि और इन बॉन्ड के माध्यम से एकत्र और उपयोग में की जा रही धनराशि के विषय में पूछा | आज भी इस मुद्दे पर फैसला होना बाकी है | अब देखना है कि वर्षो से निलंबित इस बॉन्ड का फैसला क्या होगा ? ............ ( न्यूज़ / फीचर :- रुपेश आदित्या , एम० नूपुर की कलम से )
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