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कलयुग का नजारा और आदमी की तुच्छ सोंच , प्रकृति व ईश्वर की प्रतिमा से छेड़छाड़ करता हुआ कहाँ से चलकर कहाँ तक आ गया | दुनियां आज प्रलय की कगार पर खड़ी है , सिर्फ इसलिए कि आदमी का दिमाग इतनी तेज रफ़्तार से उड़ान भर रहा है की उन्हें आदमी और ईश्वर में कोई अंतर दिखाई नहीं पड़ता | हमें याद आ गया पढ़ी हुई कुछ पंक्ति जो जिंदगी के हर दौर को दर्शाता है ....."गुरुर में इंसान को इन्सान नजर नहीं आता , अपने हीं छत पर चढ़ जाए तो उन्हें अपना मकान नजर नहीं आता" |
आज आये दिन यह देखने को मिलता है कि - इंसान को खुश करने में कुछ इंसान इस कदर डूब जाते है कि भगवान को भी मोहरा बनाने से बाज नहीं आते |
हम बात कर रहे है - हाल ही में संपन्न हुए गणेश उत्सव की जहाँ लोगो ने काफी धूमधाम से इस उत्सव को मनाया | हमारी आँखों से एक समाचार गुजर रहा है जहाँ कलम ये लिखने पर मजबूर हुआ कि आखिर क्यूँ कानपुर के पटकापुर इलाके में गणपति बप्पा को कोतवाली बनाया गया और उनके मुसक को उनका गनर बनवाकर वहां के आयोजक ने सजवाया |
लोगो की भीड़ दर्शन के लिए वहां भी उमड़ पड़ी | आकर्षित पंडाल को सजाकर पटकापुर पुलिस चौकी का नाम दिया गया जहाँ हाँ में हाँ मिलाते लोगो की बाते पढ़ने को मिली | यहाँ बप्पा को कोतवाल के रूप में वर्दी पहनाकर सजाया गया तो लोगो ने कहा कि बप्पा हमलोगों की रक्षा करते है | इसके साथ हीं क्रांतिकारी चंद्रशेखर आजाद , भगत सिंह सहित कई अन्य की तस्वीरे भी लगाईं गई | इस स्थान पर 10 वर्षो से गणेश महोत्सव मनाया जाता है | आयोजक के अनुसार यह गणेश महोत्सव पुलिस भाइयों को समर्पित किया गया है | क्यूंकि पुलिस लोगो की रक्षा करती है इसलिए बप्पा को भी वर्दी पहनाया गया |
कई टीवी सीरियल व कहानी पढ़ने , देखने व सुनने को मिला जहाँ किसी न किसी रूप में देवी देवताओं को मजाक बनाया गया | कभी गणपति बप्पा को स्पाइडर मैन के रूप में भंजाया गया , वहीं अशोभनीय पोशाक पहनाकर तुच्छ पब्लिसिटी के लिए सोंच को गन्दा कर इन लोगो ने माहौल को भी गन्दा बनाया | आज की तारीख में बच्चे बड़ो का अनुकरण करते हैं जिससे संस्कृति के डूब जाने का भय है |
हम बात करे कुछ दशक पूर्व कि जहाँ ईश्वर में आस्था व टीवी सीरियल निर्माण के प्रति लोगो में एक आस्था हुआ करती थी जिसमे हम एक नाम लेना चाहेंगे - रामानंद सागर जी की जिन्होंने रामायण सीरियल का निर्माण करने में अपनी सोंच में बरसो लगा दिए , जिससे लोगो को यह अनुभूति प्राप्त हुई कि वाकई में धरती पर ईश्वर का आगमन हुआ है |
मगर वहीं आधुनिक परिवेश के निर्माता व निर्देशक व राईटर ईश्वरीय शक्ति को कहाँ से कहाँ लाकर खड़ा किया जो शर्मसार करती है इनकी सोंच को | ईश्वर को ईश्वर हीं रहने दे , ये अदृश्य शक्ति में एक ऐसे स्वरूप है जिन्हें लोग अपने मन व आत्मा में बिठाकर महसूस करते है और अनेको रूप व छवि उनकी आँखों के सामने तैर जाती है |
बहुत सारे दफ्तर , बैंक की सीढ़ियों के किनारे , दीवार पर मैंने अपनी आँखों से देखे है देवी देवताओं की तस्वीर को सजाये हुए | सीढ़ी पर चढ़ने के क्रम में लोग उसपर अपनी जूत्तो की धुल तो उड़ाते हीं है , साथ हीं पान व गुटखा का पीक भी फेकने से बाज नहीं आते | आखिर कब सुधरेंगे ये कलयुग के भक्तगण जिन्हें सिर्फ अपनी सुख व धन की पड़ी है |
कानपुर में बप्पा को कोतवाली बना दिया कुछ अजूबा कर फेमस होने व पुलिस वालो को खुश करने के लिए | मगर मुझे ऐसा लगता है कि - अपने बप्पा को इस रूप मे देखकर शायद हीं कोई वर्दी वाले पुलिस भाई प्रसन्न हुए होंगे ? क्योंकि ईश्वर को इस रूप में उतारना इन्सान की सोंच को शर्मसार करता है | इसी मुठ्ठी भर लोग की नादानी के कारण संसार को दुःख झेलना पड़ता है जिसे लोग विपदा का नाम देते हुए स्वयं को संतुष्ट करते है |
ईश्वर व देवी देवताओं के स्वरुप को उन्हीं के स्वरुप में रहने दे , अपनी दिमागी उपज से कोई अलग निर्माण न करे | ये शक्ति का अपमान है जिसे इन्सान को भोगना पड़ेगा जो ठीक नहीं | .......... ( न्यूज़ / फीचर :- रुपेश आदित्या , एम० नूपुर की कलम से )
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