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दुनियाभर में चैत्र माह के शुक्लपक्ष की पूर्णिमा तिथि 12 अप्रैल को श्री राम के परमभक्त संकटमोचन हनुमान की जयंती काफी उत्सुकता पूर्वक धूमधाम से मनाई गई | यह अवसर बजरंगबली की स्तुति का विशेष दिन माना गया है जहाँ मुरादें पूरी होती है | 12 अप्रैल से 15 अप्रैल तक जगह जगह कीर्तन व रामयण पाठ की तैयारी जोरो पर है | श्री हनुमान भगवान शिव के रौद्र रूप है , यह अवतार रावण की मनोकामना व प्रसन्नता से जुड़ा है साथ हीं श्री नारायण के सामिप्य व उनकी मदद का एक कारण बना जिसका असर कलयुग के अंत तक जीवित रहेगा |
यह अवतार सूर्योदय काल के समय हुआ इसलिए इस रूप की पूजा मनुष्य के जीवन में रौशनी भरने का काम करता है | इस अवसर पर आज के दिन लोग प्रातःकाल से हीं अध्यात्मिक विचार की भावना से प्रवचनों का आयोजन कर वातावरण को शुद्ध व निर्मल बनाने के प्रति अपना उत्साह / उदारता / प्रेम व एकता के साथ ह्रदय की पवित्रता व भावना को इस अवतार पर समर्पित कर भक्त और भगवान के मिलन का सुखद अनुभव कर अपनी तृप्ति को एक माला में पिरोकर स्वयं को उनके चरणों में समर्पित करते हैं जिससे हनुमान अपने व रामभक्त पर विशेष कृपा कर उनकी ईच्छा पूर्ण कर आशीर्वाद देते हैं | कहीं रामायण पाठ तो कहीं सुन्दरकांड मन को पवित्रता की डोर में बांधे रखकर शुद्धता को जागृत किया |
मारुति यज्ञ के दौर में सुगन्धित पल / आलम के बीच कीर्तन की जयकारा से गूंजता रहा वातावरण | नारे कई थे वहीं सबकी जुबां पर श्री हनुमान का नाम माँ सरस्वती को पुलकित करता रहा और विचारभाव निर्मल बनते रहे | ऐसे जगह में इनकी मौजूदगी का अनुभव साक्षात् किया जा सकता है |
आँखों देखा हाल में - आज के दिन सूरत के हिम्मत नगर सोसाईटी में भक्त व मंदिर के कार्यकर्ताओं के बीच भी यहीं आलम रहा | सैकड़ो की संख्या में भीड़ उमड़कर जयकारे लगाए जहाँ एक तरफ मंदिर प्रांगण में कीर्तन की धूम मची थी तो वहीं सड़क के बीचोबीच आम जनता की दृष्टि दीदार हेतु LED पर यह लुभावना चुम्बकीय दृश्य लोगो को मोहित कर बांधे रखा |
ब्रह्म मुहूर्त से हीं यह पहल और भजन का आलम ह्रदय को पवित्रता से मालामाल करता रहा | संध्या के समय से हीं प्रसाद वितरण व भोजन का सिलसिला देर रात तक चलता रहा | सैकड़ो की संख्या में भक्त के भीड़ को एक लाइन के क्रम में देखना आँखों को ओझल कर गया | समझा जा सकता है लोगो को प्रसाद और भोजन करने की इस परम्परा की होर को जिसे सम्मान पूर्वक जीवित रखते हुए कार्यकर्तागण प्रफुल्लित नहीं समाये |
भूखे को भोजन खिलाना आत्मा की तृप्ति का परिचायक है और आत्मा में हीं परमात्मा का निवास स्थान होता है | ऐसे कार्य करनेवाले भक्तो पर श्री हनुमान की विशेष कृपा रहती है और उनकी मौजूदगी उन्हें हर घड़ी संकट से बचाती है |
कार्यकर्ताओं से जब मेरा मिलना हुआ तो इनके चेहरे पर अद्दभुत मुस्कराहट और शांति देखने को मिली | लगा जैसे ये सभी दुनिया में ईश्वर भक्ति और सेवा आराधना के लिए हीं समर्पित हुए हैं | ऐसा इसलिए कि इनके रोम रोम में बसे हैं श्रीराम | भक्त और भगवान के मिलाप की मौजूदगी में यहाँ के वातावरण की चमक हीरे से कहीं ज्यादा निखरा निखरा रहा | इनके चहरे का आकर्षण देखकर दिल दुआओं का समर्पण स्वयं को आनंद से भरता गया |
इस मंदिर की रूप रेखा की चर्चा हम आगे करेंगे | कार्यकर्तागण की सोंच पटल पर कैसे और कबतक उतरेगी इसे अंकित करेंगे मगर यह तय है कि अगले वर्ष की तैयारी और भी जोरो पर तैरेगी वहीं नजारा कई गुना बेहतर होगा | वैसे भी मंदिर निर्माण के बाद से हीं कार्यकर्तागण इस मंदिर की रौनक को सदैव बढ़ाने का काम किया है जिससे यहाँ का वातावरण सुगन्धित होकर एकता में पिरोते हुए सनातन धर्म के अध्यात्मिक ग्रंथो की यादें व अच्छे बुरे कर्मो के भोग से रूबरू कराने का धर्म कार्य कर लोगो को सुमार्ग दिखाते रहे , यहीं तो गीता का उपदेश है |
सैकड़ो लोगो को प्रसाद और भोजन करानेवाले हिम्मत नगर सोसाईटी के भक्त कार्यकर्तागण , मारुति धुन मंडल व महिला मंडल व सत्संग आदि ब्रह्ममुहूर्त से देर रात तक चलनेवाला यह भक्तिमय आयोजन सुमंग की तरह गुलाब की कोमलता व सुगन्धित शबनम की बुँदे छिड़कती रही | लोग झूमते रहें , गुनगुनाते रहें मस्ती भरा यह आलम मारुति दर्शन व आशीर्वाद के लिए समर्पित था | दर्शन देखते हुए यह कहना शायद अतिश्योक्ति नहीं होगा कि यहाँ मेरा ह्रदय मन शिवालय बना |
बहुत जल्द हम नाशिक की धरती पर होंगे और आपको अंजनेरी पर्वत पर लिए चलेंगे जहाँ श्री हनुमान की जन्म स्थली है | बाल्यकाल में इसी स्थान से सूर्य को पकड़ने के लिए श्री हनुमान ने छलांग लगाईं थी |
अब रुख करते हैं मंदिर प्रांगण में बननेवाले खुशनुमां आहार की ओर जिसे निर्मल भावना से वशीभूत पकाया गया | अभी कीर्तन समाप्त हो चूका है इसलिए यहाँ शांति बनी है और प्रांगण खुला खुला सा है | संकटमोचन हनुमान की माता अंजना पूर्व जन्म में एक अप्सरा थी और पिता केसरी कपि जाति के थे इसलिए श्री हनुमान को आंजनेय और केसरीनंदन संबोधित किया जाता है |
वायु की रफ़्तार से उड़कर श्रीलंका में माँ सीता की खोज करना बल , बुद्धि और तेज उनकी सफलता की कुंजी है | एक छोटी सी चिंगारी जहाँ रावण अपनी हीं तीली से पूरी लंका जलाने की तरफ अग्रसर हुए | यह सृष्टि रचईता द्वारा पूर्व निर्धारित कार्यक्रम था | इनकी प्रवृति इंसान को प्रेरणा देता है कि धरती पर कुछ भी असंभव नहीं और इसलिए आज आदमी का अन्तरिक्ष में महीनो रहना भी संभव बना और चाँद पर घर बसाने की सोंच के अन्दर बल और बुद्धि का उत्पन्न रहना इनके साक्ष्य का प्रतिक है |
हर बार ईश्वर किसी न किसी रूप में अवतार लेकर मनुष्य को यहीं समझाया - आगे बढ़ो , हमें साथ रखो , पास रखो और याद रखो | सुमिरन करो तो दुःख प्रतारित के लिए सक्षम नहीं होगा | महाबलशाली होकर भी दयालु श्री हनुमान ने श्री भारत के परिचय में राम भक्ति , शीतल स्वभाव और बल की प्रशंसा करते हुए उन्हें वीर व धर्यवान की उपाधि देकर सम्मानित किया |
शांत सौम्य व धर्यवान स्वभाव व प्रवृति सिर्फ इंसान हीं नहीं ईश्वर को भी लुभाता है | इसी से जुड़ा है संजीवनी बूटी का रिश्ता जिसका रसपान भगवान शेषनाग के मृत शरीर को जीवित कर अपने बीज के अपमान का कसर ले लिया | यह वहीं वृक्ष है जिसके फल को श्री लक्ष्मण ने माँ सबरी के जूठन समझकर फेंक दिया था वहीं फल एक बड़ा और शक्तिशाली वृक्ष के रूप में ख्याति प्राप्त कर संजीवनी बूटी बना | इस ज्ञान के भण्डार को आदमी अपने जीवन में उतार ले तो उन्हें कभी कष्ट नहीं होगा |
अपमान का सामना हर हाल में सभी को करना होता है | गीता में उपदेश है - तुम अपमान से अपमानित होकर मायुस मत होना सम्मान के लिए हम साथ है | श्री हनुमान अपने अदृश्य रूप से अपने भक्तो को सदैव जोखिम से बचाते है | यहीं कारण है कि आज धनाड्य लोग इस अवसर पर सार्वजनिक रूप से एकता का प्रदर्शन कर इतिहास को हर साल जीवित कर मनुष्य के बीच प्रेरणा को दर्शाते हुए संकट मोचन मारुति यज्ञ का आयोजन कर वातावरण को शुद्धता में पिरोते हैं और यहीं अनूठा संगम सोंच की गहराई है जिसे मापना हर किसी के वश में नहीं तभी बिना योजना रामायण पाठ और श्री हनुमान के भजन में भक्त यदि प्रसाद पा ले या सपने में आये श्री राम तो समझ लीजिये आपका कोई कुछ बिगाड़ नहीं सकता |
बैकुंठ जाने से पहले श्री नारायण के अवतार श्री राम अपने प्रिय हनुमान को कलयुग धर्म की रक्षा का कार्य सौंपा था | अमरत्व के वरदान के साथ आज भी हनुमान धरती पर एक जागृत देवता है और कलयुग के अंत तक सशरीर इस धरती पर विराजमान रहेंगे | धरती पर भेष बदलकर बिचरण करनेवाले श्री हनुमान वहां जरुर पहुँचते हैं जहाँ श्रीराम की चर्चा और कीर्तन होती है | इनका निवास गंधमादन पर्वत पर है जो कैलाश पर्वत के उत्तर में है | यह पर्वत सुगन्धित वनों के लिए मशहूर है जो क्षेत्र तिब्बत में स्थित है |
अब चलते चलते इतना बता दे - दुनिया चले न श्रीराम के बिना राम न मिलेंगे हनुमान के बिना तो नारायण का नाम जपते रहें | नारायण कल्कि अवतार में जब पृथ्वी पर अपना चरण रखेंगे तो श्री हनुमान उनकी सुरक्षा के लिए कवच का निर्माण करेंगे ताकि नकारात्मक शक्तियों की पहुँच उनतक न हो |
यदि कलयुग के प्रकोप से बचना हो तो सर्वप्रथम बुद्धि के देव गणपति की आराधना करें यहीं विकास के श्रीसारथी हैं | हर पल श्री हनुमान की कृपा हम सभी पर बनी रहे जय श्री राम | ............ ( न्यूज़ / फीचर :- रुपेश आदित्या , एम० नूपुर की कलम से )
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