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"पंक्षी बनू उड़ती फिरू मस्त गगन में आज मै आजाद हूँ दुनियां के चमन में" यह लाइन हिंदी फिल्म के एक गीत के बोल से लिया गया है क्यूंकि हमारा यह फीचर भी पंक्षियों के उस उड़ान से है जिसकी गति , सोंच व भावना ने लाखो लोगो को भावुक कर दिया | किसी की जुबान ने कहा - वाह वाह तो कहीं आत्मा से निकल गया - आह !
बात 15 अगस्त की है जहाँ बड़े हीं धूमधाम से सरकारी दफ्तर , स्कूल , कॉलेज व अन्य खास व आम जगहों पर हमारा राष्ट्रिय ध्वज "तिरंगा" फहराया गया |
इसी बीच सोशल मीडिया पर एक विडियो वायरल हो रहा है जो हैरान करनेवाला है | यह विडियो केरल के किसी स्कूल में झंडा फहराते समय का है | कुछ लोग झंडा फहराने की तैयारी कर रहे थे | झंडे में फूल बांधे और डोर की मदद से ऊपर करने लगे | ध्वजारोहण के वक्त गाँठ फंसने के कारण डोर का खिंचाव रुक गया तभी एक उड़ती हुई पक्षी आकर चोंच से उस गांठ को खोलकर पुनः वापस चली जाती है | झंडा में बंधा फूल चारो तरफ बिखर जाता है जैसे कि वसंती पवन ने अंगड़ाई ली हो , सरसों की फूल ने अपने खिलने का सन्देश छोड़ दिया हो , चारो तरफ का वातावरण खुशबू से लबालब हो कर इंद्रधनुषी आकाश को देखकर झूम रहा हो जैसे , ऐसे कि 15 अगस्त में लहराता यह तिरंगा जिसे पंक्षी से अभी अभी अपनी चोंच से लहरा दिया और फूल बिखर गए |
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तालियों की बारिश ने इस उत्सव को और भी हसीन बना दिया | कभी - कभी ऐसा होता है जो इक्तफाक की बात | जीवन में कुछ पन्ना रिक्त रह जाता है जिसे समय पूरा कर देता है | इस पक्षी की चाहत रही होगी या किसी जन्म का सोंच कि तिरंगा लहरा पाते ! सभी को तिरंगा फहराने का सौभाग्य प्राप्त नहीं हो पाता |
अब हम इसे क्या नाम दे ! यह एक अनुभूति है | एक सपना , ख़्वाब जैसा है जिसे लोगो ने सच होते हुए देखा , दिन की रौशनी में | आखिर यह पंक्षी उसी वक्त यहाँ कैसे पहुंची और पहुंची भी तो उसे क्या सुझा और क्यूँ ? जो इसने बंधन छुरा दिया |
मुझे भी ताज्जुब हुआ देखकर , लगा जैसे यह किसी फिल्म का एक दृश्य हो जिसमे पंक्षी को मानो पूर्व से हीं ट्रेंड कर दिया गया हो ! और ऐसा हो भी सकता है आज के आधुनिक परिवेश में कोई बड़ी बात नहीं | मगर जो भी हो , है तो आश्चर्य से भरा , इसे उपरवाले का सहयोग कहा जाए तो कोई अतिश्योक्ति नहीं | अगर चाहत हो किसी अच्छे कार्य को पूरा करने की तो अधूरे कार्य ऐसे हीं पुरे हो जाते और पता भी नहीं चलता |
उस पंक्षी के लिए -
एक तमन्ना थी तिरंगा लहराने की , आखिर समय ने यह अवसर दे हीं दिया | .......... ( न्यूज़ / फीचर :- रुपेश आदित्या , एम० नूपुर की कलम से )
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