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ये मेरे खुदा , ऐसा क्या गुनाह हुआ ? जो तूने इन्हें हिजड़ा बना दिया ! दिल तो इनके पास भी है , जो धड़कता होगा | मन भी कभी न कभी सोचता होगा ! काश मेरी भी पत्नी / पति होते , बच्चे होते , भरा पूरा परिवार होता | दुनिया की सारी खुशियां मिलती और एक इज्जत भरी जिंदगी जीने की कल्पना कर , वही मन कुंठित होकर कभी-कभी चुपके-चुपके रोता भी होगा | आंखें आंसुओं की धाराएं बहाती होगी और पुनः अपने हीं हाथ , अपने आंसुओं को पोछ वह स्वयं को दिलासा देते होंगे और फिर वही झूठी मुस्कुराहट के साथ तालियां बजा - बजाकर , नाच - तमाशा कर , रास्ते में किसी के घर शुभ कार्य या बच्चों के जन्म में या फिर ट्रेन में लोगों को अपनी बातों से खुश करते , ये हिजरे अपनी दिनचर्या में लग जाते होंगे | वाह री जिंदगी ! अगर गौर करें इनकी हर बातों पर , तो रोंगटे खड़े हो जाते हैं | जरा सोचिए ! यह जब स्वयं के बारे में सोचते होंगे , तो इन्हें कैसा महसूस होता होगा ..... !
हिजड़ा को ऐसा माना जाता है , जो लिंग रूप से न तो नर होते है और न हीं मादा | जन्म के समय से हीं लिंग विकृति के कारण ये अधूरे रह जाते है और इनकी जिंदगी कई टुकड़ों में टूट कर बिखर गई होती है , जिन्हें पूर्ण नहीं किया जा सकता | हमार विज्ञान काफी आगे निकल गया है , जब हम चाँद पर भी पहुँच चूके है | लेकिन आज भी कुछ ऐसा विज्ञान या निजात सामने नहीं आ पाया ! विज्ञान भी सक्षम नहीं कि इनके अन्दर सामान्य मर्द या औरत का रूप / आकर भर सके / दे सके , या ऐसी क्षमता से परिपूर्ण कर सके कि ये पूर्ण रूप से पति - पत्नी बनकर बच्चे को जन्म दे सकने में समर्थ्य हो | इतना है कि - किसी हिजड़े की चाहत हो महिला रूप का उभरता शरीर पाने का तो वह संभव है | लेकिन स्वाभाविक सुख क्षमता नहीं , जो ऊपर वालों ने बनाया है |
विज्ञान ने रोबोट तक भी बना डाला है | लेकिन दिल अभी तक इजात नहीं हुआ , शायद होगा भी नहीं ! उसी तरह हिजड़े का भी कुछ हिस्सा .... विज्ञान के पूर्ण करने के बाद भी शायद बेजान रह जाए |
हिजरा शब्द दक्षिण एशिया में प्रचलित है | 1994 से इन्हें मतदान करने का भी अधिकार दिया गया है | जिसमें 4 साल बाद हीं मध्य प्रदेश में प्रथम हिजरा जिनकी पहचान "शबनम मौसी" के नाम से है , को लोगों ने अपना पूर्ण मत देकर विजय बनाने का हक प्रदान कर , संसद में बिठा दिया | ऐसा नहीं है कि इनके पास अन्य क्षमता नहीं बहुत कुछ है इनके पास , जिससे ये हमारी तरह जिंदगी जी सकते है | वैसे भी पूर्ण वोट पाकर , अपनी शक्ति , प्यार , अपनापन और क्षमता दिखला दिया है शबनम मौसी ने | इन्हें जरुरत है बस अवसर मिलाने भर का और प्रोत्साहित कर साथ देने का , जो 100 प्रतिशत हमसे इन्हें नहीं मिल रहा है | कई फिल्म बनी है , वह हिंदी हो , भोजपुरी हो या अन्य , सम्पूर्ण कलाकार भी इनके जैसा बनाकर अभिनय अदा कर हमारी वाह - वाही लुटी है | इससे साफ़ जाहिर होता है कि - कहीं न कहीं हिजड़ा में भी कुछ ऐसी बात है , तभी लोग उनके जैसा बनकर , दिखना चाहते हैं | काश ! उनकी बात को समझ पाते , उनका विलाप सुन पाते |
कुछ हिजड़े की जुबानी यहाँ प्रस्तुत है | उन्होंने कहा कि - कहीं कहीं मांगने पर पांच / दस रुपये तक नहीं मिलता | तो उन्हें बोलना पड़ता है - औरत को तो मर्द देता है , हम तो तेरा हीं दिया खाते हैं | नहीं दोगे तो फिर मेरा पेट कैसे भरेगा ? कुछ हिजड़े तो इतने खुबसूरत दिखते हैं कि फर्क हीं नहीं लगता कि यह औरत नहीं ! और अपनी मीठी आदाओं में बुजुर्ग को कहते है - अरे वो मेरे अनुपम खेर जैसे ससुर जी , रुपैया दे दो न ! ओ सलमान खान जैसे देवर जी कुछ तो दे दो इस भौजी को | किसी तरह से ये बहु बनकर / भाभी बनकर या बहन बनकर , जेब से रुपैया निकलवा हीं लेती है | यह हकीकत है , मैंने अपनी आँखों से देखा है और मैंने भी दियें है बिन मांगे उन्हें रुपये | पांच - दस रुपया पाकर इनकी ख़ुशी का ठिकाना नहीं रहता और फिर दुआओं को बरसात भी होते देर नहीं लगती |
मैंने महसूस किया है , आप भी मान लीजिये कि इनकी दुआएं लगती है | लगता तो बद्दुआ भी है , जो इन्हें तंग करते है , चिढ़ाते है या जो इन्हें हिन् नजर से देखते है | यह कदापि उचित नहीं ! सोंचा जाए तो इसमे उनका क्या कसूर है ? अगर होगा भी तो , पिछले जन्मों का होगा जो इन्हें ज्ञान नहीं !
सामान्य घर में कोई हिजड़ा पैदा ले ले , तो पता चलने पर हिजड़ा टोली जबरन उस नवजात बच्चों को उठाकर अपनी टोली का हीं सदस्य बना लेते हैं | परिवार , समाज कुछ नहीं बोल सकता | कुछ लोग है , जिन्हें जन्म देने के बाद परिवार वाले छुपाकर पाल लेते है | कुछ है जो आज छुप चोरी कर सरकारी सर्विस तक कर रहे हैं | कुछ परिवार वाले तो इनकी शादी भी अच्छी लड़की देखकर करा दी है | लड़की समझदार हुई तो , उनके मर्म को समझते हुए , उन्हें लड़की के दिल में पनाह मिल जाता है | वहीं कुछ लड़कियाँ तो बोलकर तलाक तक दे डाली है | कैसे कहा जाए , क्या सही हुआ और क्या गलत ? लेकिन इतना तो सत्य है कि - इन्हें भी हमारी तरह जिंदगी जीने का पूरा हक़ है | पर अफ़सोस कोई क्या करे ? यह तो प्रकृति की देन है , समय का तकाजा है | हर इंसान को ऊपर वाले से यह दुआ करनी चाहिए - इस जमीं पर किसी का जन्म हो तो पूर्ण रूप से हो !
अगर सोंचा जाए तो ! ऊपर वाले की रचना में ये कैसे भूल , कैसी कमी और क्यूँ हुई चूक ? लेकिन ये भी तो मानना होगा , शायद पिछले जन्म की इन्हें सजा मिल रही हो | हमें इस बात को भी कदापि नहीं भुलनी चाहिए कि - हमें एक स्वस्थ मानव के रूप में ऊपर वालों ने जमीं पर भेजा है | तो फिर हम अपनी जमीं को और भी ज्यादा खुबसूरत बनायें | समाज में किसी भी तरह की गन्दगी न फैलाएं | हर गलत कार्य से बचाकर अपनी मंजिल तय करे | माना पूर्व जन्म का हमें जरा भी ख्याल नहीं , लेकिन ये जन्म भी तो अगली बार पूर्व हीं बनेगा | तो फिर इस जन्म में हम क्यूँ न अच्छे कार्य कर लोगों के दिलों से निकली दुआ का एक बैलेंस जमा कर अगले जन्म के लिए एक कश्मीर बना ले | पेड़ आम का लगायेंगे तो पेड़ में आम हीं फलेगा |
वैसे "गीता" में भगवान श्री कृष्ण ने यहीं कहा है - कर्म किये जा फल की इच्छा मत कर ये इंसान , जैसा कर्म करेगा वैसा फल देंगे भगवान | इसे सत्य मान लीजिये और अच्छे राह / मंजिल की ओर अपनी जिंदगी को बढ़ाइए | आप में जैसा / जहाँ तक क्षमता हो , किसी और के गलत बहाव के संग , बहने की कोशिश कदापि मत कीजिये |
कुछ मानव सीमित पल , कल की सुख , चैन की लालसा , तमन्ना की खातिर लूटपाट / चोरी - डांका / पॉकेटमारी या रंगदारी कर धन हासिल कर लेते हैं | यहाँ तक कि महिलाओं के साथ छेड़खानी / बलात्कार करने से भी बाज नहीं आते | कुछ मनुष्य स्वयं को इतना नीचे गिरा देते है कि - उन्हें स्वयं के घर के रिश्ते / मर्यादा तक का भी ख्याल नहीं रहता |
यह कहना शायद अतिशयोक्ति न होगा कि - यही धरती तो सही मायने में रंगमंच है , जिसमें मानव विभिन्न - विभिन्न रोल में स्वयं को प्रस्तुत करता है | ईश्वर ने तो धरती पर बहुत सारे रंग बिखेरे हैं , सोचना तो मानव को होगा - वह स्वयं को किस रंग में रंगे | क्योंकि ईश्वरीय त्रिनेत्र शक्ति के बैंक से ही तो पुण्य का हिसाब / बैलेंस मिलना है | चाहे पाप का अंश ज्यादा डालें या फिर पुण्य का | लेना तो मानव को ही पड़ेगा हर हाल में न चाहते हुए भी | क्योंकि जिसकी रचना , उसकी भरनी और यही सत्य है | इसलिए कि समयचक्र को तो घूमना है और फिर सभी मानव के हिसाब का एल्बम भी उनके चरित्र की कहानी सुनाएगा और मानव को सहना पड़ेगा , वक्त के द्वारा किया गया निर्णय , वह पक्ष में हो या विपक्ष में | इसलिए उस वक्त ना पावर पास रहेगी और न धन की ताकत | यह इस जन्म में मिले या अगले जन्म में , मिलना तय है |
तो फिर क्यूँ न हम अपनी जिंदगी / जन्म को ऐसे रंगों में रंग डाले कि - वह रंग सतरंगी रंग में रंगकर , कभी न मिटने वाली रंग बन जाए , एक इतिहास बनाकर | पाप से बचकर पूण्य की ओर दो कदम बढ़ा ले , इस उद्देश्य से कि - भगवान् अगला जन्म देना तो सर्वस्व व स्वस्थ बनाकर भेजना अपनी दुनियां में / मेरी दुनियां में / हमारी दुनियां में और ........... अभी बहुत कुछ कहना है !
अध्यात्मिक रूप से भी सोंचा जाए तो , उपरोक्त सारी बातें सच्चाई के करीब जान पड़ेगी |
नोट :- इतिहास मानव जाति के लिए बना है | फिर क्यूँ सभी मानव सिख नहीं लेते , अपने गलती या सही का ! अगर इसपर ध्यान नहीं दिया गया तो भोगना तो पड़ेगा हीं | ये तो सभी जानते है , फिर भी गलती करने से चूकते नहीं | इस जन्म में या अगली जन्म में , उसकी जिंदगी अधूरी / बेजान बनकर रह जाती है | सपना तो होता है , पर सच करने की अंदरूनी क्षमता नहीं रहती | समय का तकाजा है कि - रौशनी के बीच अँधेरे का हीं सामना करना उसकी नियति बन जाती है , वह भी तमाम उम्र वगैर संशोधन | इससे बड़ी सजा भला और क्या होगी ? इतिहास इस बात का गवाह है कि - सदियों से सूर्य / चन्द्र पर भी ग्रहण लगत रहा है | किसी ने सच हीं लिखा है - आदमी को चाहिए वक्त से डरकर रहे , क्या पता किस घड़ी वक्त का बदले मिजाज | ......... ( कहानी / फीचर :- आदित्या , एम० नूपुर )
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