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कहा जाता है कि - जल ही जीवन है और जीवन तो पानी से है | फिर ऐसे में इंसान के लिए तो पानी अमृत के समान है | इस अमृत रूपी जल के बिना जीने की कल्पना भी नहीं की जा सकती , इस धरती पर |
इंसान के रचयिता ने इस धरती पर इंसान को भेजने से पहले ही उन्हें जीवित रखने हेतु पानी की व्यवस्था की थी | ठीक उसी तरह जिस तरह बच्चे के जन्म लेने से पूर्व ही मां के पास उसे पिलाने के लिए अमृत यानी दूध की व्यवस्था हो जाती है | ईश्वरीय देन , ईश्वरीय प्यार , ईश्वरीय दया , करुणा , आशीर्वाद आदि की आशा लेकर ही हम इस धरती पर एक सांस लेते हुए सुखद सुबह की प्रतीक्षा करते हैं | चिंतन करें तो - जिस तरह बगैर पानी मछली तड़प तड़प कर दम तोड़ देती है | ठीक उसी तरह धरती से पानी विलुप्त हो जाए , तो इंसान का हाल भी मछली के जैसा ही दिखेगा | कहां है हम और कैसी जिंदगी जी रहे हैं ! कितना दूषित कर रहे हैं हम अपने वातावरण को कि कभी भी प्रकृति का प्रकोप बरस जाने की सोच से रूह कांप जाती है |
एक तरफ हम खूबसूरत प्रकृति को नष्ट कर रहे हैं , पानी के स्रोत को रोक रहे हैं , उसे विलुप्त होने पर मजबूर कर रहे हैं | वहीं दूसरी तरफ हम अपनी जिंदगी को बचाने स्वच्छ सांस लेने के लिए शुद्ध जल की व्यवस्था में चांद से लेकर मंगल तक की सतह पर पानी तलाशने की कोशिश में स्वयं को उलझा रहे हैं , ताकि ऊपर जीवन की सुरक्षित संभावनाएं ढूंढी जा सके |
दूर के ढोल सुहावन , ऐसी कथा है / स्लोगन है जिसे हम उदाहरण स्वरूप बयां करते हैं | दूर का महत्व किसी के लिए भी बहुत होता है लेकिन जो पास है , अपना है , उसे हम महत्व ही नहीं देते | यहीं हाल है अपनी सोंच का - यह अनभिज्ञता नहीं है शायद ! अतिशयोक्ति न हो तो लापरवाही कहा जा सकता है | इंसान स्वयं से बेईमानी कर रहा है और अपने लिए ही ऐसी खाई की व्यवस्था को जन्म देने में व्याकुल हो रहा है , जहाँ वह सोंच बहा ले जाएगा और गिरा देगा उसी खाई में एक दिन प्राणी को | ईश्वर ने धरती पर जन्नत का निर्माण कर हम सभी के लिए संपूर्ण व्यवस्था कर रखा है , एक से एक वन , पहाड़ , पर्वत , झील , समुन्द्र , रंग बिरंगे पशु पक्षी , फूल पौधा , जमीं आसमां , और खुशबुओं से भरा हवा के साथ खाने पीने व भौतिक सुख सुविधाओं व आवागमन के लिए अनेक व्यवस्था , जिससे सुखमय जिंदगी का आनंद उठा सकते है | लेकिन इंसान को तो बगैर मेहनत इतनी खूबसूरत जन्नत तोहफा में मिला , जो कितने जन्मों के बाद इंसान रूप में जन्म लेकर लोग आनंद उठाते हैं |
यह दावे के साथ कहा जा सकता है कि - इंसान चाहे जहां भी जाए , धरती पर रहे या फिर चांद पर वह प्रकृति से छेड़छाड़ करेंगे तो उनका जीना दुश्वार हुए बिना नहीं रहेगा | एक जानकारी के अनुसार धरती पर 2 , 94000 , 000 क्यूबिक मीटर हीं पानी उपलब्ध है , जिसमें से 3% पानी ही शुद्ध पीने लायक है | पृथ्वी पर पानी अधिकतर तरल अवस्था में ही प्राप्त होता है | इसलिए कि आज हर जगह सोलर सिस्टम ही सामने स्थित है , अतः यहां तापमान न तो इतना अधिक होता है कि - पानी उबलने लग जाए और न तापमान इतना कम होता है कि - वह बर्फ की तरह जम जाए या ठोस बन जाए |
इसकी गतिविधि - वातावरण में भाप के रूप में बारिश , ओस , बर्फ आदि के रूप में व धरती पर बहते हुए अंत में पुनः समुंद्र में ही मिलना है | कभी कभार यह पानी बहती हुई अमृतसागर या ग्रेट साल्ट लेक जैसी एक बेसिन में जमा हो जाता है | जबकि ड्रेनेज बेसिन उस क्षेत्र को कहा जाता है जहां बारिश के पानी को वाटर स्टॉक बनाकर या पूर्व व्यवस्थित में सहेजा जाता है | पानी का जल चक्र तो पानी का वातावरण में वाष्पीकरण होना है , यही पानी धरती पर वर्षा जल के रूप में गिरता है जो बहती हुई यह पानी समुंदर में जा मिलती है |
जल हर प्राणी के लिए अनमोल रतन के रूप में जीवन संजीवनी है , इसलिए इंसान का जल संरक्षण निहायत जरूरी है और इसे सिंचित करना हमारा कर्तव्य भी | हमें अपने आने वाले कल को गर सुरक्षित रखना है / करना है , तो जल को बचाने के लिए कदम बढ़ाना ही होगा |
आज के युग में पानी के हर एक बूंद का मोल पहचानना पड़ेगा | इसलिए कि आज तो पानी बिक रहा है पीने के लिए | कुछ लोग खरीदते हैं तो कुछ धन अभाव में फ्री व्यवस्था ढूंढते हैं और प्यास बुझा लेते हैं | लेकिन जरा सोच कर देखिए कि - अगर हर कार्य के लिए पानी भी , बिजली गैस और पेट्रोल की तरह खरीदना पड़े , तो क्या हाल होगा इंसान का ! चेतना होगा आज से हीं , अभी से हीं | कहीं देर ना हो जाए मंजिल की आरजू में सोंचते सोंचते और कहना पड़े त्राहि-त्राहि , कहां है पानी ....पानी ... पानी ! ....... ( जल हीं जीवन है :- भव्याश्री डेस्क द्वारा प्रकाशित )
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