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हॉस्टल की जिंदगी में होली की मस्ती , रंगों की बरसात और चेहरे पर गुलाल का फबना , वहीं दीपावली में रंगोली पर दीपो को सजाना | जीवन का आरम्भ , उतार चढ़ाव , परिवार से अलग रहकर अपनी सपनों को मंजिल तक पहुँचाने की ललक या फिर देश के विकास में अपना योगदान देने की क्षमता को एक फैलाव व हौसला देकर चाँद तक पहुंचाने की जिद्द | साथ हीं दुनियां को सतरंगी नूर में भर देने की होड़ में लगी है अपनी देश की बिटियाँ जहाँ आरंभिक दौर से न जाने कितने बदलाव किये गए फिर भी बेटियों का सपना आज भी अधुरा है | दो घर के दरवाजे की मान को लिए ये चल रही है धरातल पर |
देखा जाए तो आज भी कुछ प्रदेशों में कई प्रथाएं ऐसी है जिससे महिलाओं की जिंदगी तपती हुई रेत पर रेशमी साड़ी पहने कांटो की सैया पर आज भी सोई है | उन्हीं अंधेरो को चीरकर देश में शिक्षा के अवसर बेटियों की जिंदगी में एक नई उड़ान लाकर खड़ा कर दिया है जिससे स्नेह - स्नेह बदलाव होता दिखाई पड़ रहा है | बावजूद आज भी दुखो का वह घड़ा सरिता में बहता हुआ कभी इस पार कभी उस पार महिलाओं / बेटियों के बीच घूमता हुआ नजर आ रहा है |
"ये जीवन है , इस जीवन का यही है रंग रूप , थोड़े गम है थोड़ी खुशियाँ यही है छावं धुप" , गाने के इसी लाइन पर जीवन का आधार बुना जाता है और जिंदगी शायद इसी का नाम है - जिसमे अँधेरे को चीरकर जीवन में नूर भरने का दौर शामिल है और यह नूर जिंदगी से त्याग / तपस्या की अपेक्षा करती है जिसे शिक्षा के बिना पूर्ण नहीं माना जाएगा |
वो ज़माना लद्द गया जब बेटियों के हाथ से कलम छीन लिए जाते थे | आज की बेटियों में कलम छीन लेने और पा लेने का हुनर आ गया है | आज हम "हॉस्टल की जिंदगी और जीवन का फैलाव" पर परिचर्चा कर रहे हैं | बारी बारी से हॉस्टल की जिंदगी जी रही उन बेटियों से कुछ सवाल का जवाब यहाँ प्रस्तुत कर रहे हैं | इनके विचार आनेवाले कल के लिए प्रकाश के सामान होगा |
हमारे साथ बनी रहेंगी देश - विदेश की बेटियां , बारी - बारी से हम इनके विचार आपतक परोसेंगे |साथ हीं हम हॉस्टल की संचालिका जो एक माँ के समान साथ रहकर इन बेटियों के हौंसले / उम्मीद को बरकरार रखती हुई सपनों को टूटने / मुरझाने नहीं देती , उनसे भी हम उनकी प्रतिक्रिया लेकर आप तक पहुँचाने वाले है |
एक संचालिका जो हर साल न जाने कितनी सारी बेटियों के साथ जीवन गुजारती है और उनके हॉस्टल छोड़ जाने के बाद की जुदाई का असर उनपर कैसा पड़ता है ? प्यार के वेग को रोक लेने का हुनर कैसे / कितना / कहाँ सिमटता है ? इन्हीं जुदाई के दर्द और इस क्षण में इस बातो से वशीभूत हुई मुंबई गोरेगांव वेस्ट में स्थित छात्रावास की संचालिका Hruta Kolgaonkar बहुत जल्द हम इनके साथ इसी पन्ने पर बने रहेंगे , जहाँ इनकी जिंदगी भी इसी रास्ते से होकर प्रकाश फैलाते हुए सतरंगी सावन में नहाया है |
सबसे पहले हम दस्तक देने वाले है उत्तरप्रदेश की धरती , नवाबो का शहर लखनऊ की बेटी "श्वेता राय" के दिल के दरवाजे पर जो मुंबई के इसी छात्रावास में रहकर पढ़ाई कर रही है |
श्वेता बहुत हीं सौम्य व खुबसूरत व्यक्तित्व के धनी CA की एक छात्रा है जिसे हम इन्द्रधनुषी रंगी से भरा नूर कह दे तो शायद कोई अतिश्योक्ति न होगा | हमारी मुलाक़ात उनसे सुबह के वक्त हुई जब वे अपनी रोजमर्रा की तैयारी में व्यस्त थी | बड़ी बड़ी हिरणी सी जादुई आँखे , चेहरे पर अद्दभुत सतरंगी आकर्षण की आभा और मुस्कुराता हुआ चेहरा लिए वह मेरे सामने आकर बैठ गई |
उनकी मीठी बोल का पहला शब्द था - जी मै श्वेता , पूछिये क्या जानना चाहती हैं ? उनकी इस मीठी बोल ने मेरे कान में अमृतरस घोल दिया हो ऐसा महसूस हुआ |
हमारा पहला सवाल था -
* 10 वीं बोर्ड के बाद आपका सपना , आपकी उड़ान की गति ?
मै CA बनना चाहती हूँ | मेरी मौसी भी CA है | मै जब छोटी थी तो उन्होंने कहा था कि - तुम CA बनना | तब से हीं मेरे मन में CA बनने की भावना जागृत हो गई | कॉलेज में दाखिला लेना था तो हमारी रूचि मैथ और साइंस में नहीं थी , इसलिए मैंने बचपन की इरादे को मजबूत करते हुए CA बनने का निर्णय लेते हुए कॉमर्स ले लिया |
* बचपन की चाहते उम्र के साथ घटता बढ़ता है | आज इस निर्णय से आप कितना संतुष्ट है ?
हाँ , खुश हूँ | मुझे नहीं लगता कि - मेरा इरादा या निर्णय गलत है |
* सपनों की दुनियां मुंबई जो करोड़ो दिलो की धड़कन है , आपको कैसा लगा ?
शुरू - शुरू में तो मुंबई पसंद नहीं आ रहा था | परन्तु धीरे धीरे मुझे आदत पड़ गई और अब यहाँ सबकुछ अच्छा लगने लगा | अब तो मुंबई के सिवा कहीं भी दिल लगता नहीं | मुंबई बहुत प्यारा शहर है जो सिर्फ सपनों की दुनियां हीं नहीं करोड़ो दिलो व मन के सपनों को पूरा करने का नाम भी है |
* पढ़ाई पूरी होने के बाद आप कहाँ जायेंगी ?
अभी आगे का नहीं सोंचा है , लाइफ जहाँ ले जायेगी वहां चली जाउंगी | मुंबई में अवसर मिला तो यहाँ रहना अच्छा लगेगा , इंडिया के बाहर का भी अवसर मन को भाया तो जाना पसंद करुँगी |
* आप नवाबों का शहर लखनऊ की रहने वाली है | आपकी नज़रों में यहाँ की खासियत ? लखनऊ और मुंबई में अंतर बताइये ?
लखनऊ में शांति है , सकूँ है | नवाबों का शहर इसलिए बोला जाता है कि यहाँ मुग़ल साम्राज्य के लोग रहा करते थे | अभी भी वहां ज्यादातर मुस्लिम वर्ग के लोग रहते है तो उसकी फिलिंग अभी भी जिन्दा है | वे सभी बहुत इज्जत से बाते करते हैं | तहजीब है वहां जो उनकी जेहन में भरा पड़ा है | वहां कोई गुस्सा भी होता है तो अदब व तहजीब के साथ और मुंबई की बात केर तो - यहाँ कैरियर का अवसर है |
यहाँ कोई किसी के लाइफ में इंटरफेयर नहीं करता | जो अपनी ख़ुशी से जी रहे होते है तो जी लेते है जिंदगी अपनी | मुंबई में बहुत कुछ सिखने को मिलता है | इंसान छोटा हो या बड़ा समुन्द्र सबके लिए बराबर है | यहाँ सीमित कार्य नहीं है , मुंबई में एक विस्तार है , शिक्षित के लिए भी और अशिक्षित के लिए भी | यहाँ मेहनतकश इंसान को भूखे सोने की जरुरत नहीं पड़ती |
* पहले लड़कियों को बाहर निकलने नहीं दिया जाता था | आप उत्तरप्रदेश की है ,जहाँ आज भी घुंघट है | आपका मन इस बंधन या दबाव को कितना सही मानता है ?
पहले गलत था ,अधिकार सभी को बराबर मिलना चाहिए | जहाँ तक रेस्पेक्ट की बात है , तो भगवान को मानने के लिए आपको मंदिर जाने की जरुरत नहीं है | अगर दिल में किसी के प्रति सम्मान / इज्जत है तो न घूँघट की जरुरत है और न वहां हाथ जोड़कर औपचारिकता दिखाने की | ऐसी इज्जत का क्या फायदा ? जो आर्टिफिशियल हो या चंद घड़ी का |
* आप देश की भविष्य है , आप कैसा समाज बनाएंगी ? यदि आपके हाथ में अधिकार मिले तो देश का क्या रूप होगा ?
बहुत खुबसूरत , जैसा कि सावन के मौसम में आसमान में इन्द्रधनुषी रंगों का खिलना और सुबह ओस की बूंदों को फूलों की पंखुड़ियों पर करवटे बदलने जैसा | सबसे पहले तो हम अपनी संस्कृति और धरोहर को बचाए रखने की तरफ कदम बढ़ाएंगे | साथ हीं पर्यावरण , स्वच्छ जल , वातावरण की शुद्धता और एक अहम् बात कि - धन को रोकिये नहीं फैलने दीजिये तभी बेरोजगारी को जड़ से समाप्त किया जा सकता है | यहाँ अमीर और भी ज्यादा अमीर बनते जा रहे हैं और गरीब गरीबी में सिमटता जा रहा है , इसलिए भावना में बैलेंस नहीं है और एकता / भाईचारा में तेजी से बदलाव देखा जा रहा है | विकासशील व शक्ति से भरपूर होने के साथ हीं बराबरी का अधिकार मिलना भी जरुरी है | आज के जीवन में एक - एक कर हम सभी में तबदीली लायेंगे | कहने को तो हम चाँद पर पहुँच चुके हैं , लेकिन अभी हमें जमीन को हीं सुन्दर बनाने की जरुरत है |
* महिलाओं के लिए बस या ट्रेन में आरक्षित सीट , यह अधिकार पाकर आपको कैसा लगता है ?
जहाँ तक बराबरी की बात है तो स्वस्थ महिलाओं के लिए आरक्षण की क्या जरुरत है | गर्भवती व वृद्ध महिला , महिला या पुरुष कोई अस्वस्थ हो तो , ऐसे में लोगो को आरक्षण मिलना चाहिए | जैसे कि -अक्षम शरीर वालो के लिए सरकार ने बस और ट्रेन में सुविधा दी है | मैंने तो आजतक महिला सीट पर बैठे पुरुषों को नहीं हटाया | मेरी नजरी में जो पहले आये पहले पाए , इस सीट पर उनका हक़ है तो ऐसे में बैठे को उठाना ठीक नहीं | एक तरफ हम दोनों जेंडर बराबर के अधिकार चाहते है , फिर यहाँ अंतर किसलिए , यहाँ पर बराबरी कहाँ हुआ ?
* बचपन की वह ख़ास आदत / रूचि जिसकी तड़प आज भी कायम है ?
पेंटिंग में रूचि थी और आज भी है | सभी कुछ थोड़ा थोड़ा किया | खेल में वैडमिंटन और कलर में गुलाबी रंग मुझे खूब पसंद है |
* आप मुंबई में है , समुन्द्र की लहरें आपको कितना लुभाता है ? लोगो की चाहत व तमन्ना रहती है समुन्द्र स्पर्श का जो कितनो को नसीब नहीं होता , अपना अनुभव बताइए ?
श्वेता कुछ सोंचती हुई हलकी मुस्कान लिए कहा - मुझे समन्दर से डर लगता है | इसलिए कि समुन्द्र , नदी आदि से मुझे डूबने का डर लगता है | बचपन में तो समन्दर की समझ नहीं थी , परन्तु मुंबई में जब समुन्द्र के पास पहली बार गई तो ऐसा महसूस हुआ कि - मुझे दूर से देखना बहुत अच्छा लगता है | इनकी हिलौरे का पास आना और शांत गति से वापस चले जाना खूब आनंद देता है | खासकर सूर्योदय के समय और सूर्यास्त के समय समन्दर का नजारा देखने लायक होता है | मगर मै समुन्द्र के जल को छूती नहीं , इन्हें दूर से प्रणाम करती हूँ | इनका आशीर्वाद हम सभी पर बना रहे जो सपने देखे है हमने उसमे पंख लगा दे बस इतना हीं |
* बच्चो के लिए कोई सन्देश - हॉस्टल में उन्हें किस तरह रहना चाहिए ?
एक बच्चा बनकर और अपने रूटिंग से हर काम करे | जिस पढ़ाई के लिए पैरेंट्स ने आपका खर्च उठाया है उस विश्वास / धन को व्यर्थ न जाने दे | बच्चो को यह बात याद रखनी पड़ेगी कि - उनका कदम लड़खड़ाया तो आप उन्हें धोखा नहीं देंगे धोखा स्वयं को मिल जाएगा जिससे उनका भविष्य खतरा में पड़ सकता है | इसलिए बच्चे पहले अपनी मंजिल पर पहुंचे फिर अपने शौक को पूरा करे |
* हॉस्टल में रहने का डर लड़कियों और उनके अभिभावक के अन्दर से कैसे निकाली जाए ?
लड़की हो या लड़का 12 वीं के बाद उन्हें छात्रावास में रहना हीं चाहिए | इसलिए कि यहाँ खुद के दम पर रहने की आदत हो जाती है | मेरे हिसाब से घर से बाहर निकलना स्टूडेंट्स के हिचक को दबाकर कॉन्फिडेंस को उभारकर आप मे आत्म विश्वास जगाता है कि - आप भी कुछ अच्छा कर सकते है | घर के लोग अपने कमाने वाले पर आश्रित रहते है , परन्तु यहाँ जीने का एक खुबसूरत मकसद मिल जाता है और स्वावलंबी जिंदगी जीने के लिए बच्चे तैयार बन जाते हैं |यहाँ एक उम्र के बाद सभी को यह सोंचनी चाहिए कि - अपने दम पर जिंदगी गुजारी / संवारी जाए |
* आपका लाइफ पार्टनर कैसा हो ?
बस विचार मिलनी चाहिए , काम दोनों करेंगे , जॉब एक हो या फिर अलग अलग मुझे दोनों स्वीकार है |
* बच्चे स्वयं के सपने को पूरा करने के दौरान परिवार को छोड़ देते है , उनके दर्द को आप कैसे बाटेंगी ?
उनके साथ हम शायद नहीं रह पाए , क्यूंकि हम घर से दूर जॉब कर रहे हैं | यह कोशिश रहे कि - उन्हें हमारी जरुरत या कमी महसूस न हो |इसलिए साल में एक या दो बार या फिर जितना संभव हो त्यौहार मनाने अपने घर जरुर पहुंचे | ताकि कुछ दिन एक साथ रहकर उसकी भरपाई कर आनंद उठाया जा सके | यही पल एक बैंक बैलेंस की तरह होगा जिसकी यादें दूर रहकर भी जुदाई सिलती रहेगी | इसके साथ उन्हें भी चाहिए कि - उन्हें जब भी हमारी जरुरत हो तो वे हमें बेझिझक बोल दे , जैसे बचपन में हम उनसे बोला करते थे या माँगा करते थे |
* आप अभी छात्राओं / महिलाओं को रिप्रजेंट कर रही हैं | बहुत सारे बच्चे ऐसे होते है जो माँ - पिता को घर से बेघर कर देते है | माँ - पिता अपने बच्चो में फर्क नहीं करते , मगर बच्चे माँ - पिता को संभाल नहीं पाते , ऐसा क्यूँ ?
मेरे पैरेंट्स या मेरे पति के पैरेंट्स ने हमें इस काबिल बनाया जिससे हम अपने पाँव पर खड़ा हो सके , बाहर जा सके , तो उन्हें अकेला नहीं छोड़ना चाहिए | परन्तु मज़बूरी यह है कि - हम काम कर रहे होते है तो शायद हम उनके साथ न रह सके | यह बहुत दुःख की बात है और मुझे भी समझ नहीं आता कि बच्चे ऐसा क्यूँ करते है ? कोई अपने पैरेंट्स को इस कदर अकेले भला कैसे छोड़ सकता है ? यह मेरे समझ में नहीं आता , यह तो बहुत बड़ा प्रश्न है |
हमारे बूढ़े होने की बात अलग है , मगर मै शायद कभी भी ऐसा न कर पाऊं इतना स्वयं पर भरोषा है | कुछ पाने के लिए बहुत कुछ खोना पड़ता है , सारी खुशियों को स्टूडेंट रहते या फिर जॉब करते हम नहीं संभाल सकते | बस इतना जरुर है कि हमारे माता - पिता का भी पूरा जीवन हमें पालने में लग गया तो सुख तो उन्हें भी नहीं मिला | दूर रहकर सुख से जितना वंचित हम है , उतना हीं दुखी वे भी है | इसलिए स्टूडेंट्स को चाहिए अभी से सुख की भरपूर तैयारी करना ताकि पैरेंट्स के दुखो को पाटा जा सके |
* बेटियों के लिए कुछ ऐसा सन्देश जिससे उन्हें फैलाव मिल सके -
हाँ शादी से पहले आसमान में उड़ान भरना आसान है ,जमी पर जितना चाहो पौधा लगा लो यह आपके और आनेवाले कल के लिए काम आयेंगे | पहले से आप तैयार रहेंगे तो शादी के बाद आपके कदम को कोई रोक नहीं पायेगा | कल के इंतज़ार में कल का वह सवेरा कभी नहीं आएगा जहाँ बचपन छीन लिए जायेंगे | ऐसे में बेटियों को शादी से पहले स्वावलंबी बनना बहुत जरुरी है और यही पड़ाव पार करना दर्द का पाट है | ....... ( परिचर्चा फीचर :- एम० नूपुर की कलम से )
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